देश की राजधानी दिल्ली में स्थित कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली दंगों के आरोप में जेल बंद JNU के पूर्व छात्र उमर खालिद  की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। खालिद की जमानत याचिका पर फैसला आज यानि कि 14 मार्च को सुनाया जाएगा।बता दें कि 3 मार्च को कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) अमिताभ रावत ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।वहीं, खालिद ने दिल्ली दंगों में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के मामले में जमानत की गुहार लगाई है।

कड़कड़डूमा कोर्ट में उमर खालिद की जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान उनके वकील ने कहा, अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाने या फिर सार्वजनिक रूप से बोलने का मतलब यह नहीं होता कि अल्पसंख्यक सांप्रदायिक हैं। कोर्ट में पेश वकील त्रिदीप पेस ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने कुछ वॉट्सएप ग्रुप्स पर उनके मुवक्किल (उमर खालिद) की चुप्पी को अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया था। लेकिन इन वॉट्सएप ग्रुप पर उमर खालिद की कोई सक्रियता कभी नहीं रही। यह पहला मौका है जब किसी की चुप्पी को उसके खिलाफ माना जा रहा है।

कोर्ट में पेश वकील त्रिदीप पेस ने कहा किउन्होंने कोर्ट में कहा, CAA और NRC को भेदभावपूर्ण कहना मुझे कतई सांप्रदायिक नहीं बनाता। इस दौरान वकील ने खालिद की पीएचडी थीसिस का भी जिक्र किया, जोकि झारखंड के आदिवासियों पर किए गए शोध पर आधारित है। उन्होंने कहा, कोई व्यक्ति किसी मुद्दे को उठाता है तो उसे सांप्रदायिक नहीं कह सकते। सिर्फ इस आधार पर क्योंकि वह लोगों के एक वर्ग के बारे में लिखता है, जिन अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, उनके लिए बोलना उन्हें सांप्रदायिक नहीं बनाता है। नागरिकता संशोधन अधिनियम का बहुत सारे लोगों ने विरोध किया। ऐसे में रामचंद्र गुहा, टीएम कृष्णा और कई लोगों ने इस कानून के खिलाफ बात की है। लेकिन आरोप सिर्फ उमर खालिद पर ही क्यों? चार्जशीट दाखिल होने के बाद कोर्ट ने पहले पुलिस और फिर खालिद समेत सभी पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद खालिद को जमानत दी जाए या नहीं इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। हालांकि, इस मामले में कोर्ट ने कहा, अब इस मामले में 14 मार्च को फैसला सुनाया जाएगा।