नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा ऑफलाइन तरीके से न लिये जाने के संबंध में दायर याचिका बुधवार को खारिज कर दी और साथ ही याचिकाकर्ता को फटकार लगायी कि वह भविष्य में ऐसी याचिका दायर न करें, जिससे लोगों में दुविधा पैदा हो। जस्टिस ए एम खनविलकर की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सीबीएसई, आईसीएसई, एनआईओएस और सभी राज्य बोर्ड द्वारा 10वीं और 12वीं की परीक्षा ऑफलाइन न लिये जाने के संबंध में दायर याचिका खारिज कर दी। खंडपीठ के अन्य सदस्य जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सी टी रवि कुमार थे।

खंडपीठ ने साथ ही याचिकाकर्ता को चेतावनी दी कि यह समयपूर्व दायर याचिका है और इससे लाखों छात्र दुविधा में आयेंगे। उन्होंने साथ ही कहा कि अगर वह इस तरह की हरकत दोबारा करती हैं तो याचिकाकर्ता को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत पद्मनाभन को कहा कि इस तरह की याचिका से दुविधा पैदा होती है और वह किस तरह की याचिका दायर कर रहे हैं। खंडपीठ ने कहा कि इस प्रकार की याचिकाओं को कैसी पब्लिसिटी मिलती है। ये दुविधा पैदा करती हैं। छात्रों और प्रशासन को उनका काम करने देना चाहिये।

प्रशांत पद्मनाभन ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि वह सीबीएसई के मौजूदा निर्देशों को देखे और उन्होंने साथ ही गत साल परीक्षा के दौरान दायर याचिका का उल्लेख किया।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो अतीत में हुआ, वह नियम नहीं बन सकता है और यह भ्रामक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में प्रशासन को निर्णय लेने दिया जाये।

याचिका में कहा गया था कि विभिन्न बोडोर्ं के छात्रों ने याचिकाकर्ता अनुभा श्रीवास्तव सहाय से संपर्क किया था। याचिका में कहा गया है कि इन परीक्षाओं में प्रदर्शन करने का मानसिक दबाव बच्चों पर इतना रहता है कि हर साल कितने बच्चे कम अंक लाने या असफल होने के भय में आत्महत्या कर लेते हैं।

याचिका में कहा गया था कि इसके साथ ही छात्र कोविड-19 वायरस के संक्रमित होने को लेकर भी भयभीत हैं।