तुम किसी का सम्मान उसकी ईमानदारी, बुद्धिमत्ता, प्रेम और कार्य कुशलता जैसे सद्गुणों के लिए करते हो परंतु समय के साथ-साथ इन गुणों में परिवर्तन आता है। जिसके कारण तुम उनका सम्मान नहीं कर पाते। तुम केवल सद्गुणों का, महानता का सम्मान करते हो। मैं संपूर्णता से हर एक का सम्मान करता हूं। इसीलिए किसी भी व्यक्ति के लिए मेरा सम्मान कम नहीं होता। सम्मान पाने के लिए किसी को महान होने की आवश्यकता नहीं। जीवन का सम्मान महान बनाता है। दूसरों से सम्मान की अपेक्षा मत करो। यह कमजोर बनाता है। आत्मा का सम्मान करो। तब कोई तुम्हारे आत्म सम्मान को ले नहीं सकता। जब कोई तुम्हें सम्मान देता है, तो इसलिए नहीं कि तुममे कुछ विशेष गुण हैं। यह उनकी महानता और उदारता के कारण है। यदि तुम कहते हो, ईश्वर महान है, यह तुम्हें महान बनाता है। ईश्वर तो महान हैं ही- तुम्हारे कहने से ईश्वर को कोई फर्क नहीं पड़ता। जब तुम किसी को सम्मान देते हो, यह तुम्हारी विशालता दर्शाता है। यदि तुम सबका सम्मान करते हो तो उतना अधिक तुम्हारा मोल है। वह ज्ञानी है, जो सबका सम्मान करता है। सम्मान देना उन्नत चेतना का गुण है। आत्मा के प्रति सम्मान निष्ठा है और निष्ठा है उन्मुक्त होना। जिस प्रकार तुम मुझे सम्मान देते हो, उसी तरह सबको सम्मान दो। परंतु जो अपेक्षा तुम सबसे करते हो, वह सबसे मत करो। प्राय: तुम इसका उल्टा करते हो। तुम सबको वह आदर नहीं देते, जो मुझको देते हो पर आशा करते हो कि वे तुम्हें खुशी दें, तुमसे उत्तम व्यवहार करें। जब उनका व्यवहार तुम्हारी अपेक्षानुसार नहीं होता, तब तुम निराश होते हो और उनको दोषी ठहराते हो, उनकी निन्दा करते हो। निन्दा करने से, अभिशाप देने से, तुम्हारी आध्यात्मिक शक्ति क्षीण होती है। आशीर्वाद तुम्हारी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाता है। सहनशीलता, धैर्य और विवेक से कुशलतापूर्वक आगे बढ़ो। यदि तुम्हारे आसपास मूर्ख हैं, तो समझो, वे तुम्हें और बुद्धिमान बनाएंगे। तुम कितने केंद्रित हो, यह तुम्हारे आसपास रहने वाले मूर्खों की संख्या से मालूम पड़ता है। मूर्खों को हटाने का प्रयास मत करो। यदि तुम केंद्रित नहीं हो, तो तुममे उनको बर्दाश्त करने का धैर्य नहीं होगा। जब तुम पूर्ण रूप से आत्मस्थित हो, तब पाते हो कि मूर्ख से भी ज्ञान मिल सकता है। वे तुम्हारे ही प्रतिबिम्ब हैं। मूर्ख तुम्हें हताश भी कर सकते हैं, या ज्ञान भी दे सकते हैं, चुनाव तुम्हारा है।