भोपाल : आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा शंकर व्याख्यानमाला के 43वें संस्करण में चिन्मय मिशन कोयम्बटूर के स्वामी अनुकूलानंद सरस्वती जी ने कार्य-कारण विवेक पर व्याख्यान दिया। स्वामी जी ने बताया कि जो दिखता है वही पूर्ण सत्य नहीं होता है। सत्य का अन्वेषण और अनुसंधान करना पड़ता है। जैसे आकाश नीला दिखता है लेकिन होता नहीं है। रेगिस्तान में पानी दिखता है लेकिन वह भ्रम होता है। इसलिए सत्य को जानने के लिए विवेक आवश्यक है। ब्रह्म ही परम सत्य है और उसको जानने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार से विवेक करना पड़ता है।

 सृष्टि प्रक्रिया से समझाया कार्य-कारण विवेक

स्वामी जी ने बताया कि जो सत्य ब्रह्म है, वह कार्य और कारण से परे है। ब्रह्म को जानने के लिए जो हमें सत्य सा दिखता है, उसको समझना और उसका निषेध करना आवश्यक है। जो जगत हमें दिखता है वह कार्य है और उसका निर्माणकर्ता कारण है। जगत की सृष्टि स्थिति और लय के माध्यम से कार्य-कारण विवेक समझ सकते हैं। जो कार्य है वह कारण का ही नाम रूप है। स्वामी जी ने सृष्टि प्रक्रिया बताते हुए कहा कि ब्रह्म यानी अक्षर पुरुष से ही आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल, जल से पृथ्वी, पृथ्वी से औषधि, औषधि से अन्न तथा अन्न से जीव की उत्पत्ति हुई। यानी ब्रह्म ही जगत रूप में भासित हो रहा है। इसे विवर्त कहते हैं। जिस प्रकार मिट्टी के विभिन्न पात्र केवल मिट्टी के नाम-रूप हैं, मिट्टी कारण है तथा उसके बने हुए पात्र कार्य हैं, किंतु वस्तुतः कारण ही कार्य है।

स्वामी जी ने लय प्रक्रिया समझाते हुए बताया कि संपूर्ण जगत ब्रह्म में ही समाहित है। इसलिए कार्य और कारण में कोई भेद नहीं है। अंत में जो सत्य शेष रहता है वह ब्रह्म ही है, जो कार्य और कारण से परे है। इसलिए वेदों में कहा गया - सर्वं खल्विदं ब्रह्म। 

स्वामी अनुकूलानंद सरस्वती

स्वामी अनुकूलानंद ने दो वर्षों तक सांदीपनी साधनालय, चिन्मय मिशन में वेदांत का अध्ययन किया। स्वामी जी ने 15 अगस्त 2000 को ब्रह्मचर्य दीक्षा एवं वर्ष 2013 में शिवरात्रि के पावन दिवस पर स्वामी तेजोमयानंद सरस्वती से संन्यास दीक्षा प्राप्त की। स्वामीजी अखिल भारतीय चिन्मय युवा केंद्र, दक्षिण क्षेत्र के निदेशक के साथ चिन्मय अंतर्राष्ट्रीय आवासीय विद्यालय, कोयम्बटूर के आवासीय निदेशक भी हैं। साथ ही चिन्मय एजुकेशन सेल के बोर्ड तथा चिन्मय विश्वविद्यापीठ, प्रबंधन बोर्ड के भी सदस्य हैं। स्वामीजी भगवत गीता, उपनिषद् एवं "आधुनिक समस्याओं के भारतीय समाधान" आदि विषयों पर व्याख्यान और शिविर करते हुए वेदान्त का व्यापक प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।