बिजली कंपनियों के वित्तीय कुप्रबंधन का नतीजा करोड़ों का फिजूलखर्च


भोपाल । बिजली कंपनियों के वित्तीय कुप्रबंधन का नतीजा है कि करोड़ों रुपये का फिजूलखर्च हो रहा है। जिसका सीधा भार प्रदेश के आम उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीदकर उठाना पड़ता है। ऐसा ही वित्तीय कुप्रबंधन मप्र पावर जनरेशन कंपनी की इकाईयों में सामने आया है जहां कोयले की रेक अनलोडिंग में लेटलतीफी की वजह से हर साल करोड़ों रुपये का जुर्माना रेलवे को देना पड़ रहा है।हैरानी की बात ये है कि कुछ साल पहले ही इस जुर्माने से बचने के लिए इकाई में वैकल्पिक साइडिंग का निर्माण हुआ था लेकिन उसकी गुणवत्ता ऐसी थी कि दो साल के भीतर ही उपयोग बंद हो गया। नतीजा जुर्माना बढ़ाकर देना पड़ रहा है।

क्या है मामला
 संजय गांधी ताप गृह में रेलवे के जरिए कोयला भेजा जाता है। रेलवे एक रेंक को खाली करने के लिए साढ़े चार घंटे का वक्त देता है। इससे अधिक वक्त लगने पर प्रति घंटे के हिसाब से जुर्माना देना पड़ता है। कोरोना काल में रेलवे ने अनलोडिंग का समय 4.30 घंटे से बढ़ाकर 8-9 घंटे भी किया। जबकि इकाई में रेंक खाली करने में 9 से 18 घंटे का समय लग रहा है जिस वजह से जुर्माना देना पड़ रहा है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में इकाई में रेलवे के 1494 रेंक कोयला पहुंचा था। इसके लिए डैमरेज चार्ज के रूप में 3.10 करोड़ रुपये देना पड़ा। वहीं वित्तीय वर्ष 2021-22 में फरवरी 2022 तक 1084 रेंक पहुंचा जिसके लिए 4.10 करोड़ रुपये जुर्माना देना पड़ा।

वैकल्पिक साइडिंग भी काम नहीं आई
 संजय गांधी ताप गृह में साल 2016 में डैमरेज चार्ज कम करने के लिए इकाई में अल्टानेट पाथ बनाने का प्रस्ताव हुआ। जिसके आधार पर निविदा निकाली गई। 51 करोड़ रुपये की लागत से मैसर्स एनरगो ने उस वक्त साइडिंग बनाने का ठेका लिया। कुछ दिन बाद कंपनी दिवालिया हो गई और काम अधूरा छोड़कर चली गई। जिसके बाद मप्र पावर जनरेशन कंपनी ने अपने स्तर पर पर अल्टानेथ पाथ का निर्माण करवाया। करीब तीन साल पहले ही यह साइडिंग खराब गुणवत्ता की वजह से खराब हो गई। जहां ट्रेन का रेंक खड़ा नहीं हो सकता है।

कोयला सप्लाई भी बाधित
कोयले की गुणवत्ता के अलावा रेंक वक्त पर खाली नहीं होने के कारण कोयले की सप्लाई बाधित होती है। जिस वजह से इकाईयों का संचालन प्रभावित होता है।