सरकार LIC की बड़ी इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग  को अगले वित्त वर्ष तक के लिए टाल सकती है। बाजार के जानकारों ने कहा कि ऐसा सरकार इसलिए कर सकती है क्योंकि रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध  से पब्लिक इश्यू में फंड मैनेजर्स की रूचि घटी है। सरकार इस महीने जीवन बीमा निगम  में पांच फीसदी हिस्सेदारी बेचने पर विचार कर रही थी, जिससे 60,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि मिल सकती थी। आईपीओ से सरकार को इस वित्त वर्ष में अपने 78,000 करोड़ रुपये के विनिवेश के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलती

भारतीय बाजार ने भी इस पर अपनी नकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। और इसमें अपने रिकॉर्ड ऊंचाई से करीब 11 फीसदी की गिरावट देखी गई है। उन्होंने आगे बताया कि इसलिए, वर्तमान की बाजार की उथल-पुथल LIC के आईपीओ के लिए सही नहीं है। और सरकार इश्यू को अगले वित्त वर्ष तक के लिए टाल सकती है। सामान्य तौर पर, बड़े उतार-चढ़ाव वाले बाजार में, निवेशक सुरक्षित तौर पर पैसा लगाते हैं और नए निवेश करने से बचते हैं। इसलिए, इक्विटी मार्केट को स्थिर होने की जरूरत है, जिससे निवेशकों को LIC IPO में निवेश करने का आत्मविश्वास मिले। समान भावना को जाहिर करते हुए, इक्विटीमास्टर में रिसर्च की को-हेड तनुश्री बैनर्जी ने कहा कि कमजोर बाजार की स्थिति, खासतौर पर यूक्रेन-रूस की जंग की स्थिति में, आईपीओ के लिए बुरी साबित हुई है। जहां आईपीओ के स्थगित होने की संभावना मौजूद है, वहीं इश्यू सरकार की विनिवेश की योजनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। आईपीओ के 9 से 10 अरब डॉलर के साइज को देखते हुए, इसे बड़ी लिक्विडिटी की खपत की जरूरत होगी। इसका मतलब है कि इसे एफपीआई सपोर्ट की जरूरत होगी। सरकार इसका ध्यान रख रही है और इसलिए कैबिनेट ने एलआईसी आईपीओ में 20 फीसदी एफपीआई निवेश की मंजूरी दी है।