भारत मे कई अनूठे मंदिर है जो देश विदेश में भी प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आपने कभी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जिसमे राक्षस की पूजा होती है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताएंगे जिसमे राहु की पूजा होती है।

समुद्र मंथन के दौरान जो अमृत निकला था उसे स्वरभानु राक्षस ने पी लिया था। जिसके बाद भगवान विष्णु ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था। लेकिन वह अमृत पी चुका था इसलिए वो मरा नहीं और उसके शरीर के दो हिस्से हो गए जिन्हें आज राहु और केतु के नाम से जाना जाता है। स्वरभानु राक्षस का सिर राहु और उसका धड़ केतु कहा जाता है। उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पैठाणी गांव में एक ऐसा मंदिर है जिसमें राहु की पूजा की जाती है। इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएँ प्रचलित है।

कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं आदि शंकराचार्य ने करवाया था। जब वे दक्षिण से हिमालय की यात्रा कर रहे थे उस समय उन्हें इस स्थान पर राहु के प्रभाव का अहसास हुआ था इसलिए उन्होंने इस स्थान पर राहु का मंदिर बनवाया और इस मंदिर में भगवान शिव की भी पूजा होती है।
पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि जब भगवान विष्णु ने सुदर्शन से स्वरभानु नामक असुर का सिर काटा था तो उसका सिर इस स्थान पर आकर गिरा था इसलिए इस स्थान पर राहु के मंदिर का निर्माण हुआ था। यह मंदिर एक ऐसा मंदिर है जिसमें राहु गृह की मूर्ति भगवान शंकर की मूर्ति के साथ स्थापित है। इस मंदिर में बनी नक्काशी अपने आप में एक आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर में जगह जगह राहु के कटे हुए सिर और भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र को बनाया गया है। कई विद्वानों का तो यह भी मानना है कि इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना स्वयं राहु ने की थी।

यह मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है क्योंकि इसमें जो वास्तुशिल्प और प्रतिमाएं मिलती है उसके आधार पर यह पता चलता है कि यह शिव मंदिर और इसमें उपस्थित सभी प्रतिमाएं आठवीं नवीं सदी के समय की है।

इस मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि जो भी लोग यहाँ पर पूजा पाठ करने आते हैं उनके जीवन मे राहु से संबंधित सभी दोष दूर हो जाते हैं जिसके चलते यहाँ पर बड़ी संख्या में लोग आते हैं। यहाँ पर आने वाले भक्त मूंग की खिचड़ी लेकर आते हैं क्योंकि राहु को मूंग की खिचड़ी का भोग लगता है और प्रसाद में भी मूंग की खिचड़ी ही बटती है।

यदि आप भी इस मंदिर में जाना चाहते हैं तो उसका रास्ता बहुत ही सुगम है। आप हवाई जहाज से जालीग्रांट देहरादून हवाई अड्डे पर उतर सकते हैं जो कि इस मंदिर के सबसे निकटतम मौजूद हवाई अड्डा है। यदि आप रेल से जाते है तो आप कोटद्वार, ऋषिकेश, हरिद्वार या फिर राम नगर किसी भी रेलवे स्टेशन पर उतरकर वहाँ से बस या टैक्सी ले सकते हैं। वहां से मंदिर के लिए बसें और टैक्सी नियमित रूप से चलती रहती है इसलिए यह आसानी से मिल जाती है। यदि आप सड़क के रास्ते जाना चाहते हैं तो आप जिले के प्रमुख स्थल जैसे कोटद्वार, लैंसडाउन, पौड़ी, श्रीनगर आदि से जा सकते हैं यह टिहरी-मुरादाबाद राज्य राजमार्ग से सुगम रूप से जुड़े हैं।